एक मुट्ठी चावल के साथ शुरू हुआ था 10,000 महिलाओं का यह अनूठा सहकारी बैंक

एक मुट्ठी चावल के साथ शुरू हुआ था 10,000 महिलाओं का यह अनूठा सहकारी बैंक

भारतीय महिलाओं को हमेशा से ही घर के कुशल प्रबंधन और बचत की आदत के लिए जाना जाता है। उनकी इस आदत के लिए प्रशंसा भी की जाती है।

महिलाओं के इस आदत का प्रमाण नोटबंदी के दौरान भी देखने को मिला था। पुरुषों से ज्यादा महिलाओं ने पैसे छुपा छुपा कर रखे थे।

महिलाओं की इस आदत को समझते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी खुले मंच पर महिलाओं की प्रशंसा की थी और बचत खातों पर उन्हें छूट देने की बात भी कही थी।

लेकिन भारत जैसे देश में महिलाओं का शोषण होना एक कड़वी सच्चाई है। सालों से इस पर मंथन हो रहा है लेकिन आज भी स्थितियां बहुत ज्यादा नहीं सुधरी है।

इस समस्या पर सालों से मंथन करने वाली बिलासपुर की हेमलता साहू ने पाया कि महिलाओं के शोषण का मूल कारण पैसा ही है। लेकिन महिलाएं स्वावलंबन के जरिए आत्मसम्मान पा सकती हैं।

वह इसी सोच के साथ कुछ करना चाहती थी, जिससे महिलाएं आत्मनिर्भर हो सकें। शुरुआत के लिए उन्होंने महिलाओं के वोकल ट्रेनिंग पर ध्यान दिया और इसके लिए स्वाध्याय केंद्र खोले।

शुरू में उन्होंने पहले शहरी महिलाओं को जोड़ा उसके बाद चैरिटेबल ट्रस्ट और इसकी यूनिट को भी बना कर जोड़ दिया।

बाजार में महिलाओं द्वारा पहली बार टेलरिंग शॉप खोलने पर पुरुष प्रधान समाज ने इसका विरोध किया था, लेकिन धीरे-धीरे समाज ने इसे स्वीकार कर लिया।

इसी बीच हेमलता ने जम्मू कश्मीर में विस्थापित महिलाओं की छत्तीसगढ़ में आने की खबर पढी, क्योंकि उसके पति को मार डाला गया था।

आदिवासी महिलाएं पहले से ही छत्तीसगढ़ में प्रताड़ित होती रही थी। कुछ मारवाड़ी महिलाएं जो हेमलता साहू के साथ जुड़ी हुई थी, उन्होंने उनके सहयोग से विस्थापित एवं आदिवासी महिलाओं को संगठित करने के लिए दो ग्रुप बनाया गया।

पहले ग्रुप में 20 महिलाएं थी और दूसरे ग्रुप में 40 महिलाएं थी। उन्होंने महिलाओं को इस संगठन से जुड़ने के लिए धर्म और आस्था से भी इसे जोड़ने की कोशिश की और इसके लिए एक एक मुट्ठी चावल हर महिला के द्वारा उन्होंने इकट्ठा करवाया और एक अनोखे बैंक की शुरुआत कर दी।

हालांकि दो-चार महीने में ही इस बैंक के प्रबंधन में कठिनाइयां आने लगी, क्योंकि सभी के द्वारा लाया गया चावल अलग अलग किस्म का रहता था। लेकिन इसी के साथ एक संगठन भी तैयार हो गया।

फिर उन्होंने पैसा जुटाया इसके बाद सरकारी विभागों में जाकर उन्होंने अपने हक के लिए लड़ा। उन्हें पहली जीत विस्थापित महिलाओं को रोजगार दिलाने के रूप में मिली।

इसके बाद हेमलता साहू और उनसे जुड़े अन्य महिलाओं के संगठन को अपनी एक नई पहचान बना ली। अब वह 23 गांव में 500 ग्रुप बनाकर उन्हें सरकारी तंत्र से जोड़ रही हैं, ताकि उन्हें आसानी से लोन मिल सके।

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सरकार भी हेमलता साहू की इस मुहिम में सहयोग कर रही है, और ₹25000 प्रति सदस्य को लोन लेने लगा है, जिसमें 10,000 की छूट दी जाती और ₹15000 सरकार को वापस करना रहता है।

लेकिन सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार व्याप्त है तो पहले उन्होंने इसकी लड़ाई लड़ी। इसके बाद उन्होंने निश्चय किया कि पैसे की बचत की जाएगी और बचत का पैसा उनका होगा और बैंक भी उनका रहेगा।

साल 2003 में उन्होंने 10,000 महिलाओं के साथ सखी क्रेडिट समिति संगठन की स्थापना की, जिसमें महिलाएं अपना पैसा जमा करवाती हैं और अब यहीं से वो लोन भी लेती हैं।

इस बैंक से पहले महिलाएं ₹2000 को 3 एकड़ जमीन, खेती-बाड़ी को गाँव के महाजन के पास गिरवी रख दी थी।

इस तरह से सखी बैंक पहले 88 एकड़ जमीन को छुड़वाया जिससे वो महिलाओं को स्वावलंबी बन सके, महिलाओं को उनकी जमीन का मालिकाना हक भी मिल गया। इसको सखी बैंक की सबसे बड़ी उपलब्धि भी बताई जाती है।

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आज इस अनोखे बैंक से महिलाएं अपनी बचत का 5 गुना तक लोन ले लेती हैं। हेमलता साहू ने बताया कि खेती-बाड़ी शिक्षा और सामाजिक कार्य के लिए उनकी बैंक से लोन दिए जाते हैं, जिसमें लोन पर ब्याज 15% सालाना घटते दर पर होता है और बचत पर 7% की दर से ब्याज मिलता है।

लाभांश का हिस्सा भी बचत करने वाली महिलाओं को दे दिया जाता है। सहकारिता अधिनियम के अंतर्गत इस बैंक को रजिस्टर कर दिया गया है ।

इसकी कार्यप्रणाली को पारदर्शी रखने के लिए महिला संगठनों में महिला कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता दी जाती है। सामाजिक बदलाव के साथ यह बैंक सामाजिक सुधार के प्रति एक बहुत बड़ा कदम बताया जा रहा है।

इस कहानी से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि महिलाओं को उन पर हो रहे शोषण के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। अगर महिलाएं चाह ले तो कुछ भी मुमकिन है, वह कुछ भी कर सकती हैं और उन्हें अपने साथ धीरे-धीरे लोग भी मिल जाते हैं जो उनकी मदद करते हैं और उन्हें आगे बढ़ने में सहयोग करते हैं।

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