पश्चिम बंगाल के एक गांव के लोगों ने सामूहिक प्रयास से बंजर पहाड़ पर Jungle उगा दिया

पश्चिम बंगाल के एक गांव के लोगों ने सामूहिक प्रयास से बंजर पहाड़ पर जंगल उगा दिया

1997 तक West Bangal  के पुरुलिया जिला का गाँव Jharbagda (झारबगड़ा ) लगभग 50 किलोमीटर के दायरे में हर तरफ बंजर जमीनों से गिरा था। लेकिन आज यहां पर घने जंगल देखने को मिलते हैं, जहां पर कई पशु पक्षी अपना डेरा डाले हुए हैं।

पहले इस गांव में एक पहाड़ था और वहां पर एक मंदिर था जिसके बगल में सिर्फ एक पेड़ था। उस मंदिर में मंदिर के पुजारी और स्थानीय लोग कभी कभार ही पूजा करने के लिए जाया करते थे।

झारखंड के जमशेदपुर से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर यह गांव स्थित था। पहाड़ी के नीचे बसे इस गांव में करीब 300 घर थे।

हर तरफ बंजर होने और पेड़ पौधा न होने के चलते गर्मियों के मौसम में यहां के लोगों को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता था। लोगो का रहना मुश्किल था।

लेकिन आज यह गांव हरा भरा हो गया है। करीब 387 एकड़ जमीन पर Dense Forest उग गए हैं, जहां पर कई प्रजात के पशु पक्षी अपना घर बना लिए हैं।

यह वही गांव है जहां के किसान कभी पानी की कमी से जूझ रहे थे और साल भर मे एक फसल उगा पाते थे, लेकिन आज साल में दो बार खेती कर ले रहे हैं।

गांव की बदली इस सूरत का श्रेय गांव वालों की सालों की मेहनत और उनके जज्बे को जाता है, जिन्होंने मिलकर बंजर जमीन को सोना उगाने वाली जमीन में बदल दिया है।

गैर सरकारी संगठन से मिली मदद :-

गांव वालों को Tagore Society For Rural Development  (टीएसएफआरडी) नाम के एक गैर सरकारी संगठन द्वारा काफी मदद मिली और सालों की मेहनत के बाद इस गांव का वातावरण काफी बदल गया।

धीरे-धीरे भू-जल का स्तर बढ़ने लगा और किसानों को खेती करने के लिए पानी मिलने लगा। गांव प्रगति के रास्ते पर अग्रसर होने लगा।

इस तरह बदली तस्वीर :-

1997 में Tagore Society For Rural Development (टैगोर सोसायटी फॉर रूरल डेवलपमेंट ) की टीम यहां पर आकर वृक्षारोपण का काम शुरू की। NGO (एनजीओ) के लीडर Badal Maharana  कहते हैं कि दशकों पहले यहां पर घना जंगल हुआ करता था लेकिन जमीदारी प्रथा के चलते यह जंगल नष्ट हो गया।

वह आगे बताते हैं कि मिट्टी, भौगोलिक परिस्थितियों और पानी की निकट उपलब्धता का विश्लेषण करने के लिए वह और उनकी टीम कई बार दौरे पर आये और ऐसा चार पौधों की पहचान की जो भौगोलिक विशेषताओं की दृष्टि से उपयुक्त हो।

1998 में Plantation का कार्य शुरू हुआ और संगठन द्वारा 5 साल के अंदर यहां पर 36,000 पेड़ लगा दिया गया। पेड़ लगने से स्थानीय लोगों को फल मिलने लगा और खाना पकाने के लिए जलावन लकड़िया भी मिलने लगी।

वह बताते हैं कि उन्होंने टीम के साथ मिलकर 4 साल तक पेड़ो की देखभाल की और उनका Plantation का कार्य सालों तक जारी रहा। इस दौरान 72 प्रकार के साढ़े चार लाख पौधे लगा दिया गया। लेकिन इनमें से मात्र 3.2 लाख पर ही बचे। जल संकट होने की वजह से पौधों की सिंचाई करने में कठिनाई होती थी।

गांव वालों ने वृक्षारोपण में मदद की :-

बादल महाराणा बताते हैं कि शुरुआत के दिनों में Plantation के दौरान गांव के 3 लोगों ने ही उनका साथ दिया।

ज्यादातर लोग यही समझते थे कि यहां पर कुछ भी उगाया जाना संभव नही है और यदि पेड़ लोग भी जाते हैं तो उनमें फल नही आयेंगे।

लेकिन धीरे-धीरे पेड़ बड़े होने लगे और उनमें फल लगने लगा तो अन्य लोग भी इस प्रयास में शामिल होने लगे। सभी मिलकर काम करने लगे।

गाँव वालों की मेहनत रंग लाई। इसी बीच साल 2007 में 11 हाथियों का झुंड में इस जंगल में पहुंच गया और धीरे-धीरे प्रवासी पक्षी, सांप, छोटे जानवर भी जंगल में आने लगे ।

जो इस बात का स्पष्ट संकेत था कि वहां का वातावरण Wild Animal  और जैव विविधता के स्वागत के लिए तैयार हो रहा है। टीएसआरडी के कोषाध्यक्ष नंद लाल बताते हैं कि अब तो यहां पर गौर, लोमड़ी जैसे जानवर भी देखने को मिलते हैं।

अब जंगल खुद को विकसित कर रहा है और अब तक यहां पर 5.28 लाख से भी अधिक पेड़ लगाए जा चुके हैं।

पानी को इकट्ठा करने के लिए गांव वालों ने खुदाई की। बारिश के पानी के बहाव को धीमा करने के लिए प्राकृतिक संरचना बनाई, जिससे भूजल के स्तर को बढ़ाया जा सके। अब यहां जानवरों के लिए एक तालाब भी बना दिया गया है।

ग्रीन जोन बढ़ने से इसका फायदा किसानों को हुआ गांव की मिट्टी में नमी बढ़ने लगी और किसानों को फसल की पैदावार अच्छी होने लगी।

नंदलाल बताते हैं कि आज इस गांव में 20 फीट पर पानी मिल जाता है। इस Community Effort ( सामुदायिक प्रयास ) से आज Jharbagda Village ही नही बल्कि आसपास के गांव की 30, 000 हजार से भी अधिक आबादी को लाभ मिल रहा है।

जंगल की सुरक्षा के लिए एक गार्ड की तैनाती की गई है, जो यहां पर पेड़ों की कटाई न हो, इसकी निगरानी करता है। हालांकि बूढ़े और सूखे या गिरे पेड़ों को जलावन के लिए काटने की इजाजत है। गांव की महिलाएं सूखे पत्ते जमा करने के लिए जंगल मे आती हैं।

आत्मनिर्भर हुआ Jharbagda :-

आज इस गांव में 100 फीसदी खेती योग्य जमीन पर खेती की जा रही है। Badal Maharana  का कहना है कि किसान पहले अपनी पूरी जमीन पर खेती नही कर पाते थे, लेकिन जल स्तर में सुधार होने से आज वह अपनी पूरी जमीन पर खेती कर ले रहे हैं।

उनके उत्पादन में भी वृद्धि हुई है। आज किसान धान, दाल के अलावा कई तरह की सब्जियों की खेती भी कर रहे हैं।

फण्ड खत्म होने के बाद 2006 के बाद टैगोर सोसायटी फॉर रूरल डेवलपमेंट द्वारा कोई भी पेड़ नही लगाया गया है। लेकिन इस सामुदायिक प्रयास को पिछले कुछ सालों से राज्य सरकार के द्वारा आर्थिक मदद मिला रही है।

इससे हमें यह सीख मिलती है कि अगर सब लोग मिलकर किसी काम को करने की कोशिश करते हैं तो नमुमकिन काम भी आसान हो जाता है।

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